थूक या पेशाब लगाकर फल - सब्जियां - बेचने की घटनाओं के बाद से देशभर में डर का माहौल है । मीडिया की । खबरों के अनुसार कुछ जगहों पर गैर - मुस्लिम लोगों ने मुस्लिम दुकानदारों से सामान लेना बंद कर दिया । दूसरी तरफ़ सेकुलर ब्रिगेड यह आरोप लगा रही है कि यह ' इस्लामोफोबिया है और इसके नाम पर मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है । कुछ एक इलाकों में लोग बायकॉट जरूर कर रहे होंगे , लेकिन किसी । धार्मिक संगठन ने इसकी कोई अपील नहीं की है । क्या आपको पता है कि मुसलमान कैसे दूसरे धर्म वालों का आर्थिक बहिष्कार करते रहे है ? यह समस्या सिर्फ भारत की नहीं , बल्कि दुनिया भर में मुसलमान ईसाई , हिंदू , सिख और दूसरे सभी धर्मों का बायकॉट करते है और इसके लिए उन्होंने बाकायदा एक अंतरराष्ट्रीय सिस्टम . विकसित कर रखा है । इसे हलाल सर्टिफिकेट ' के नाम से जाना जाता है । यह तरीका है जिसका शिकार दुनिया भर के गैर - मुस्लिम हो रहे हैं । लेकिन बहुत सारे लोगों को आज तक इसके बारे में जानकारी भी नहीं है । अब यह बात उठ रही है कि हिंदुओं को हलाल लेबल वाले सामान नहीं खरीदने चाहिए ।
क्या होता है हलाल ? '
हलाल ' अरबी भाषा का शब्द है , जो इस्लाम के पैदा होने से पहले का है । अब मुसलमान इसका इस्तेमाल मचीजों या सेवाओं के लिए करते है जो उसके मजहब के मुताबिक है । अगर नहीं है तो उन्हें राम कहा जाता है । मोटे तौर पर लोग इसे मास के कारोबार से जोड़कर देखते है । सच यह है कि मुस्लिम दुनिया ने लगभग सभी सामान और सेवाओं पर हराम और हलाल का ठप्पा लगा रखा है । जहां तक मास की बात येलाल भी माना जाता है जब किसी पशु के गले की नसों को काटकर उसे धीरे - धीरे तड़पाकर मारा गया हो । इसलिए ताकि उसका पूरा मून या जाए । मारते समय पशु का सिर काबा की तरफ होना चाहिए । इस दौरान एक आयत पदी जाती है सबसे बड़ी बात कि कसाई कोर्ट मजदयी मुसलमान ही होना चाहिए । अगर ये सारीशर्ते पूरी होती हो तभी मीट को हलाल माना जाता है । मामला सिर्फ मीट तक होता तो भी ठीक था । धीरे - धीरे दवाएं , अस्पताल , होटल . भगार सामग्री , खाने - पीने की शाकाहारी चीजों और लगभग हर उस चीज गीलाल की मांग होने लगी जिसका प्रयोग आम दिनचर्या में होता है ।
हलाल में समस्या क्या ?
अगर कोई होटल सिर्फ हलाल मीट परोस रहा है तो मतलब हुमा कि सभी ग्राहकों को हलाल मीट खाने को मजबूर किया जा रहा है । इनमें हिंदू , सिख और ईसाई भी है जिनकी धार्मिक मान्यता के मुताबिक जानवर को तड़पाकर मारना गलत है और उसका मांस दूषित होता है । सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ के नियमों में हलाल मांस खाने से मना किया है । दुनिया के लगभग सभी समाजों में मांस खाने का प्रचलन है . लेकिन इस्लाम को छोड़कर किसी में भी मास के लिए जानवर को तिल - तिलकर मारने की प्रथा नहीं हर जगह एक हाटके में काटने को कहा जाता है . जिसे डाटकाया Jerk कहा जाता है । इससे जानवर को कम समय के लिए दर्द होता है और जल्दी ही उसकी मौत हो जाती है । जबकि हलाल में जानवर देर तक इयता रदससे उसके अटरएडिनलीन जैसे हार्मास निकलते है जिनका इसान पर बुरा असर पड़ सकता है ।हलाल सिस्टम से मांस कारोबार करने वाले दूसरे धर्मों के लोगों का एक तरह से बहिष्कार हो जाता है । क्योंकि बाकी धर्मों के लोग झटका मास के लिए जिद नहीं करते ।
बाज़ार में छाया हलाल-
कम लोगों को पता होगा कि ज्यादातर रेस्टोरेंट , होटल , मैकडोनल्ड्स और केएफसी जैसे पूड आउटलेट मुसलमानों के दबाव में हलाल मांस ही देते है । अब चकियो हलाल मांस ही खरीदते हतोर - मुस्लिम मास कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया । पिछले दिनों आरटीआई से पता चला कि एयर इंडिया और IRCTC भी यात्रियों को हलाल ही परोस रहे है । इंडोनेशिया के प्रसिद्ध टूरिस्ट स्पॉट बाली में हिंदुओं की आबादी अधिक है । वहा पर हिंदू ही मास का कारोबार करते है । लेकिन वहां आने वाले मुस्लिम पर्यटकों ने होटलों से जिंद शुरू कर दी कि वो हलाल मास परोस , वरना वो कही और चले जाएगे । नतीजा यह हया कि धीरे - धीरे सभी होटलों ने हलाल परोसना शुरु कर दिया । इस कारण बाली में हिंदुओं का पूरा कारोबार चौपट हो गया और इस पर मुसलमानों का कब्जा हो गया । इतना ही नहीं , मुस्लिम देशदूसरे देशों से जो भी सामान खरीदते हैं उसमें भी वो इलाल की शर्त रखते है । इसी का नतीजा है कि आज हल्दीराम के प्रोडक्ट हलाल है । हाल ही में केरल में एक हलाल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स का विज्ञापन निकला था । अब तो मामला डेटिंग वेबसाइट और हलाल टूरिज्म तक पहुंच चुका है । और तो और बाबा रामदेव को भी पतंजलि के उत्पाद विदेशों में बेचने के लिए हलाल सर्टिफिकेट लेना पडा हलाल सर्टिफिकेट के लिए कंपनियों को मुसलमानों को बतौर कर्मचारी रखना होता है जो उत्पादनपर नजर रखते है । यानी इससे रोजगार मेगा दूसरे धर्मो से भेदभाव होता है । दिल्ली में निजमातियों को कोरोला । वायरस के शक में अलग रखा गया था उनमें से कई ने सैनेटाइजर इसलिए फेंक दिए वे क्योंकि मपरालाल काठाया नहीं था । उनका कहना था कि सेनेटाइजर में अल्कोहल होता इसलिए वो इस्लाम में हराम है । नीचे आप मैकडोनल्ड्स का बयान देख सकते है ।
हलाल की अर्थव्यवस्था-
हलाल एक तरह की गैर कानूनी वसूली कर चुका है । दुनिया भर में मुस्लिम संगठन इसका सर्टिफिकेट देते है जिसके बदले में वो कंपनियों से मोटी फीस वसूलते है । कंपनियों ये फीस देने को मजबूर हैं क्योंकि उन्हें लगता । है कि ऐसा नहीं करेंगे तो मुस्लिम ग्राहक सामान नहीं खरीदेंगे । हलाल सर्टिफाइड सामान पर एक छोटासा लेबल लग जाता है . जिसे देखकर ग्राहकों को पता चलता है । ठीक वैसे ही जैसे FSSAL और FDA के निशान सामान पर लगते हाकि गैर - मुस्लिम लोगों को इस बारे में पता नहीं होता इसलिए वो भी इन्हें खरीदते है । । कंपनियों ने चूकि हलाल सर्टिफिकेट पैसा देकर खरीदा है , इसलिए वो इसका पैसा ग्राहकों से वसूलते हैं । यानी हम आप जो सामान खरीदते है उसमें लाल का पैसा भी चुकाते है , जबकि हमें इससे कोई लेना - देना नहीं । यह एक तरह का जजिया जो हिंदुओं और गैरमुस्लिमों को देना होता है । भारत ही नहीं . दुनिया के हर देश में जहा मुसलमानों की संख्या कम देवदा भी वो इसे दूसरे धर्मो पर योप चुके है । जीवे आप हलाल सर्टिफिकेट देख सकते है जो अक्सर प्रोडक्ट्स पर लगा होता है ।
हलाल से आतंकवाद तक-
भारत में जमीयत उलेमा ए हिंद और जमीयत उलेमा ए महाराष्ट्र नाम की दो संस्थाएं लाल सर्टिफिकेट देती है । हर कंपनी से इसके बदले वो मोटी रकम लेती है । ये सर्टिफिकेट मांस ही नहीं , आटा दाल चावल दवा होटल कार सभी के लिए होता है । इससे उनको करोड़ों रुपये की कमाई होती है । दुनिया भर में हलाल की यह अर्थव्यवस्था भारत की कुल जीडीपी से भी अधिक है । जमीयत उलेमा ए हिंद और हलाल का पैसे बटोले वाली ये संस्थाएं मातंकवादियों का मुकदमा कोर्ट में लड़ती है । उसके परिवारों की आर्थिक मदद भी करती है । इस तरह से हमारा आपका पैसा इस्लामी भातकवाद के भी काम आता है । कमलेश तिवारी के हत्यारों का मुकदमा भी जमीयत लड़ रही है । पहले इसका नाम जमीयत उलेमा ए इस्लाम हुमा करता था । भारत के बंटवारे में इसका बहादायमाना जाता है । देश बटने के बाद भारत के इलाके में बचे इसके सदस्यों ने कहा कि वो यही रहेंगे और संस्था का नाम बदल लिया । हाल ही में नागरिकता कानून के विरोध में इस संगठन का बड़ी भूमिका थी , जबकि देखा जाए तो उसे ऐसा करने का नैतिक रूप से कोई अधिकार नहीं होना चाहिए ।
खाने - पीने की आदतों पर असर. -
हलाल का सबसे बुरा असर यह हो रहा है कि जो कंपनियाँ हलाल सर्टिफिकेट पाने की स्थिति में नहीं होती वो । एक तरह से बाज़ार से बाहर हो जाती हैं । जैसे कि मुसलमान सुअर का मांस ( Pork ) नहीं खाते । ऐसे में अगर कोई कंपनी पोर्क का काम करती है तो उसे हलाल सर्टिफिकेट नहीं मिलता । लिहाजा कंपनियों को पोर्क बंद । करना पड़ता है । इससे बहुत तरह की खाने - पीने की चीजें बाजार से बाहर हो रही हैं । साथ ही कंपनियां मजबूर । होती है कि वो अपने प्रोडक्ट इस्लामी नियमों से बनाएं ताकि हलाल प्रमाणपत्र पा सकें ।
हलाल को कांग्रेस का समर्थन. -
जहां तक भारत में हलाल का प्रश्न इसके पीछे 2009 से 2014 तक सले में रही मनमोहन सरकार का सबसे । बड़ा हाथ माना जाता है । भारत से मांस का सबसे ज्यादा निर्यात चीन , जापान और वियतनाम जैसे देशों में होता है , जो मुस्लिम देश नहीं है । लेकिन भारत में मांस निर्यात करने वाली कंपनियों के लिए जरूरी है कि वो हलाल सर्टिफिकेट लें । यह नियम हलाल लॉबी को खुश करने के लिए कांग्रेस ने लिया था । उम्मीद की जा रही है कि मोदी सरकार इसे जल्द खत्म करेगी । काग्रेस ने जय रघुराज राजन को रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया था तो आते ही उन्होंने भारत में इस्लामिक बैंकिंग की योजना बनानी शुरु कर दी थी । लेकिन तब तक मोदी सरकार सत्ता में आ गई और उसने इस स्कीम पर पानी फेर दिया ।
संविधान के खिलाफ़ है हलाल. -
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है । हाल ही में कुछ लोगों ने जब मुस्लिम दुकानदारों से सामान खरीदने से इनकार किया तो पुलिस ने उन्हें इसी का दोषी मानते हुए गिरफ्तार किया । लेकिन हलाल के के नाम पर जब कोई मुसलमान जब किसी दुकान या प्रोडक्ट का बायकॉट करता है तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती । हलाल के कारण दूसरे धर्मों के लोगों का मांस कारोबार खत्म हो गया । उदाहरण के लिए खटीक जाति के लोग यह काम करते रहे हैं । लेकिन अब वो बेरोजगार हो गए । अनुसूचित जाति और जनजाति कानून ( SC - ST Act ) के तहत यह इन जातियों का एक तरह का आर्थिक बहिष्कार है ।
इस सम्बन्ध में क्या कहता है अन्य वेबसाइटो की रिर्पोट-
इस सम्बन्ध में विकिपीडिया ने विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराया है। जिससे आपको समझने में काफी मदद मिल सकती है।
-देखे-स्रोत एवं रिर्पोट- विकिपीडिया की रिर्पोट-
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--देखे-स्रोत एवं रिर्पोट- newsloose-com
हलाल की इस अर्थव्यवस्था के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता रविरंजन सिंह काफी समय से आवाज उठा रहे है । मुद्दे को ज्यादा विस्तार से समझने के लिए आप उनका यह वीडियो भी देख सकते है ।
रवि रंजन इसका आर्थिक पहलू बताते हैं कि किसी भी भोज्य पदार्थ, चाहे वे चिप्स क्यों न हों, को ‘हलाल’ तभी माना जा सकता है जब उसकी कमाई में से एक हिस्सा ‘ज़कात’ में जाए- जिसे वे जिहादी आतंकवाद को पैसा देने के ही बराबर मानते हैं, क्योंकि हमारे पास यह जानने का कोई ज़रिया नहीं है कि ज़कात के नाम पर गया पैसा ज़कात में ही जा रहा है या जिहाद में। और जिहाद काफ़िर के खिलाफ ही होता है!
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